June 10, 2015
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डेविड बर्नबाउम ने तोड़ा ब्रह्मांड का कोड
स्वतंत्र विद्वान एवं तत्वमीमांसाशास्त्री, डेविड बर्नबाउम।
वह क्या है जो समीकरणों में आग फूंकता है?
21वीं सदी का सामर्थ्य की खोज का सिद्धांत किस प्रकार ब्रह्माण्ड के कोड को बड़ी सुंदरता से तोड़ता है
डेविड बर्नबाउम ने दिया स्टीफन हॉकिंग को उत्तर
हमारे ब्रह्माण्ड को कौन चलाता है? ग्रीस के महान दार्शनिक अंततः इस प्रश्न पर निरुत्तर हो गए थे, और यही हाल समकालीन भौतिकी का है। 21वीं सदी के एक समकलीन स्वतंत्र विद्वान एवं तत्वमीमांसाशास्त्री, मेनहट्टन के डेविड बर्नबाउम ने कहा है कि ‘सामर्थ्य’ ब्रह्माण्ड को चलाता है।
उनकी परिकल्पना के अनुसार ब्रह्माण्ड की मूल संचालक शक्ति है इनफ़ाइनाइट क्वेस्ट फ़ॉर पोटेंशियल यानि सामर्थ्य की अंतहीन खोज। दर्जनों वैज्ञानिक पत्रिकाओं (देखें SummaCoverage.com) में 150 से भी अधिक लेखों और समीक्षाओं ने लगभग एक चौथाई सदी तक इस सम्मोहक और पूरी तरह एकीकृत सिद्धांत का विच्छेदन और विश्लेषण किया है; अभी तक इसमें कोई दोष नहीं पाया गया है।
इनफ़ाइनाइट क्वेस्ट फ़ॉर पोटेंशियल (संक्षिप्त : क्यू4पी) की चर्चा में, हम 20वीं सदी की भौतिकी और दर्शनशास्त्र में कुछ महत्वपूर्ण अंतरालों पर नजर डालेंगे। हमारा साहित्यिक वाहन दो महत्वपूर्ण दर्शनशास्त्रीय विचार नायकों : केंब्रिज के भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग तथा मेनहट्टन के तत्वमीमांसाशास्त्री डेविड बर्नबाउम के बीच एक काल्पनिक आदान-प्रदान से गुजरेगा।
हॉकिंग की रचना द ग्रैंड डिज़ाइन (2010) में असल में किसी भी ‘ग्रैंड डिज़ाइन’ यानि विराट संरचना की संभावना को नकारा गया है; बर्नबाउम ने 3 भागों वाली सुमा मेटाफिज़िका शृंखला (1988, 2005, 2014) और उससे संबद्ध सामर्थ्यवाद सिद्धांत की रचना की है जो उनके परिकल्पित तत्वमीमांसीय परिवर्तनकारी बल, ‘सामर्थ्य की अंतहीन खोज’ के माध्यम से हमारे ब्रह्माण्ड को ग्रैंड डिजाइन’ का परिणाम बताती है।
प्रख्यात समकालीन ब्रिटिश भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने भौतिकी एवं ब्रह्माण्ड के संबंध में हमें बहुत से अविस्मरणीय सूत्र दिए हैं। और जब हॉकिंग बोलते हैं, तो लोग वाकई सुनते हैं। वे भौतिकी के क्षेत्र में एक ‘चोटी के खिलाड़ी’ और एक अग्रणी मस्तिष्क हैं। हॉकिंग ने हमें अब तक बहुत सी परिकल्पनाएं दी हैं -- जो ब्रह्माण्डीय समझ के लिए ढेर सारी छोटी-छोटी आशाएं और बुद्धि-खंड हैं; हालांकि शिक्षा जगत के अपने भूतपूर्व समकालीनों की भांति, महान हॉकिंग भी मुख्य प्रश्नों को अनुत्तरित छोड़ देते हैं।
बहुत से लोगों का विश्वास है कि डेविड बर्नबाउम का एकीकृत सामर्थ्यवाद का सिद्धांत, उनके प्रस्तावित मूल परिवर्तनकारी बल, ‘सामर्थ्य की अंतहीन खोज’ के माध्यम से तत्वमीमांसा के मुख्य (ऐतिहासिक एवं अब तक दुःसाध्य) मुद्दों का बड़ी सुंदरता से खुलासा करता है -- सामर्थ्य की अंतहीन खोज को एक ब्रह्माण्डीय स्थिरांक के रूप में प्रस्तावित किया गया है (हालांकि यह स्थिरांक काफ़ी जीवंत है)। आइए देखते हैं कि बर्नबाउम के सिद्धांत में महान हॉकिंग के प्रश्नों को पर्याप्त ढंग से संबोधित करने की क्षमता है या नहीं। सबसे पहले, हमें सुमा मेटाफिज़िका की कुछ अवधारणाओं को समझना होगा।
सुमा मेटाफिज़िका का सामर्थ्यवाद का सिद्धांत
बर्नबाउम के अनुसार, एक व्यापक, प्राकृतिक, ब्रह्माण्डीय परिवर्तनकारी बल विद्यमान है जिसे बर्नबाउम अपनी परिकल्पना में सामर्थ्य की अंतहीन खोज का नाम देते हैं। बर्नबाउम के अनुसार, यह परिवर्तनकारी बल शाश्वत है और अंतहीन रूप से पुनरावृत्ति कर रहा है; इसने हमारे ब्रह्माण्ड को आरंभ किया; यह आज तक हमारे ब्रह्माण्ड को आगे चला रहा है; यह जीवन को प्रेरित करता है और उसे धारण भी किए हुए है; इसका लक्ष्य अनवरत ढंग से अधिकतम/अनुकूलतम सामर्थ्य की खोज में लगे रहना है। अन्य शब्दों में, यदि यह अस्तित्व में है तो यह तत्वमीमांसा के लिए परम ‘अमोघास्त्र’ है।
सुमा मेटाफिज़िका वेबसाइट के अनुसार:
"सामर्थ्य की अंतहीन खोज (अंतहीन ढंग से पुनरावृत्ति करती हुई) ही शाश्वत ब्रह्माण्डीय परिवर्तनकारी बल है। यह परिवर्तनकारी बल अनंत काल से अपने मार्ग पर आगे बढ़ता जा रहा है, सबसे पहले हमारे ब्रह्माण्ड को आरंभ करने से लेकर -- भविष्य में -- अंततः अपने अंदर उच्चतर-स्तर की चेतना वाले मनुष्यों के उद्भव को उत्प्रेरित करने तक।"
"एक सुंदर परिवर्तनकारी बल और केवल एक सुंदर परिवर्तनकारी बल -- सामर्थ्य की अंतहीन खोज -- संपूर्ण ब्रह्माण्डीय व्यवस्था को आरंभ भी करता है और संचालित भी। वस्तुतः ब्रह्माण्डीय व्यवस्था का एक सर्वेसर्वा है, पर वह सर्वेसर्वा एक खोज है, न कि कोई ‘चिरप्रतिष्ठित सत्ता’।"
"ब्रह्माण्ड अपने अधिकतम/अनुकूलतम सामर्थ्य की खोज करता है। मूल परिवर्तनकारी बल सामर्थ्य की खोज, सदैव पहले से भी अधिक व उच्चतर सामर्थ्य की दिशा में अपने प्रयोजन के साथ आगे बढ़ता है। 'समय के आरंभ' में, सामर्थ्य की शाश्वत और अंतहीन खोज ने महाविस्फोट के माध्यम से हमारे ब्रह्माण्ड को आरंभ करने के लिए भौतिकी-गणित के शाश्वत (आद्य) समीकरणों का उपयोग किया था।"
"इसी सहजीवी परिवर्तनकारी बल -- सामर्थ्य की अंतहीन खोज-- ने फिर भौतिकी व गणित के साथ मिलकर उस मार्ग के उत्प्रेरक का कार्य किया जो अंततः 21वीं सदी के उच्चस्तरीय मनुष्यों तक पहुंचता है।"
ध्यान दें कि एमआईटी के क्वांटम भौतिकशास्त्रियों सेथ लॉयड (2006) एवं मैक्स टेगमार्क (2014) की समकालीन रचनाएं (विवरण के लिए नीचे देखें), सुमा मेटाफिज़िका शृंखला (1988, 2005, 2014) के सामर्थ्यवाद के सिद्धांत से मेल खाती हैं।
तो चलिए अब बात करते हैं हॉकिंग के कुछ प्रसिद्ध उद्धरणों, प्रश्नों एवं जिज्ञासाओं की...
हॉकिंग : "वह क्या है जो समीकरणों में आग फूंकता है?"
हॉकिंग की सूक्ति जो अब प्रतिष्ठित है -- "यदि केवल एक संभव एकीकृत सिद्धांत है भी, तो वह बस नियमों और समीकरणों का समूह है। वह क्या है जो समीकरणों में आग फूंकता है और उनके द्वारा वर्णित होने के लिए एक ब्रह्माण्ड बनाता है? गणितीय निदर्श की रचना करने की विज्ञान की आम पद्धति इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकती है कि निदर्श द्वारा वर्णित किए जाने के लिए ब्रह्माण्ड क्यों होना चाहिए। ब्रह्माण्ड आख़िर अस्तित्व में होने का कष्ट क्यों उठाता है?" -- यह बर्नबाउम के सुमा मेटाफिज़िका नामक प्रबंध की भूमिका हो सकता था। स्पष्ट है कि हॉकिंग का प्रश्न, बड़ा ही चतुर है। वस्तुतः वह क्या है जो हमारे सामने मौजूद असंख्य समीकरणों को जीवंत कर देता है?
परंपरागत शैक्षिक विज्ञान कभी-भी इसका संतोषजनक उत्तर नहीं दे सका है। निःसंदेह, हॉकिंग के समीकरण में एक गहरा प्रश्न स्थित है, वस्तुतः वह एक संयुक्त प्रश्न है -- ब्रह्माण्डीय व्यवस्था को आरंभ किसने किया और इसे आगे कौन बढ़ाता है? हॉकिंग के प्रश्न को देखने का एक अन्य तरीका यह है कि यह चिरप्रतिष्ठित, शाश्वत उद्गम के प्रश्न : शाश्वत मूल ब्रह्माण्डीय परिवर्तनकारी बल क्या है? का एक प्रकारांतर है।
प्रश्नों के इस गुच्छे पर बर्नबाउम का उत्तर यह है कि एक व्यापक ब्रह्माण्डीय परिवर्तनकारी बल : सामर्थ्य की शाश्वत व अंतहीन खोज -- वास्तव में है और यह कि यही शाश्वत एवं व्यापक परिवर्तनकारी बल ही समीकरणों में ‘आग फूंकता’ है।
प्रोफ़ेसर स्टीफन हॉकिंग
हॉकिंग : "लाखों वर्षों तक मानवजाति पशुओं की भांति जीती रही। फिर अचानक कुछ हुआ जिसने हमारी कल्पना की शक्ति को सामने ला दिया। मानवजाति ने बोलना और सुनना सीख लिया।"
यहां क्या हुआ था? इस 'छलांग' का कारण क्या था?
जो हुआ वह स्पष्टतः बर्नबाउम द्वारा वर्णित सामर्थ्य की अंतहीन खोज का ही खेल था जो खुद को दोहरा रही थी।
अपनी सामर्थ्य तक पहुंचने के लिए, मानवजाति को अपने इर्द-गिर्द के पशुओं से अधिक जटिलता/परिष्करण के स्तर में धकेला गया था। उस उन्नत जटिलता के स्वरूप में उच्चतर स्तर की प्रज्ञा, भाषा, भावनाएं और चेतना थी।
सामर्थ्यवाद के सिद्धांत के अनुसार, ‘उन्नति’ होगी यह धारणा ज्ञात थी; केवल प्रश्न यह था कि कब होगी और किस रूप में होगी।
हॉकिंग : "विज्ञान का पूरा इतिहास इस बात की एक क्रमिक समझ के अलावा कुछ नहीं है कि घटनाएं मनमाफ़िक ढंग से नहीं होती हैं, बल्कि वे एक अंतर्निहित व्यवस्था को प्रतिबिंबित करती हैं जो किसी दिव्यशक्ति से प्रेरित हो भी सकती है और नहीं भी।"
बर्नबाउम के अनुसार : बिल्कुल ठीक। "...एक अंतर्निहित व्यवस्था..."
बर्नबाउम का विस्तृत उत्तर -- सुमा के मूल तथ्य को स्पष्ट रूप से कहने के लिए धन्यवाद प्रोफ़ेसर हॉकिंग। यह सिद्धांत सशक्त है -- और संभावित रूप से यह उन दर्शनशास्त्रीय/वैज्ञानिक मुद्दों में से 90 प्रतिशत से भी अधिक के मुख्य बिंदुओं को को हल करता है जिनसे दर्शनशास्त्री जूझते आ रहे हैं।
सामर्थ्यवाद के सिद्धांत के केंद्र में यह मान्यता है कि समस्त ब्रह्माण्ड में एक केंद्रीय, अंतर्निहित व्यवस्था है। एक उच्चतर बल। एक व्यापक परिवर्तनकारी बल। जैसा कि नोट किया गया है, इस बल को सुमा मेटाफिज़िका द्वारा "सामर्थ्य की अंतहीन खोज" के रूप में माना गया है।
एक लगातार ऊंचा उठते जाते परिवर्तनकारी बल को वैज्ञानिक समुदाय की ओर से मान्यता बहुत पहले ही मिल जानी चाहिए थी पर इसकी संभावना अब जाकर बन रही है; पर खुद भौतिकशास्त्रियों ने कुछ तत्वमीमांसाशास्त्रियों एवं दार्शनिकों के बहुत लंबे समय से दिए जा रहे इस विचार को मानना आरंभ कर दिया है कि : ब्रह्माण्डीय व्यवस्था में एक पैटर्न, प्रयोजन और दिशा है।
जैसा कि उल्लिखित है, सुमा मेटाफिज़िक्स यह प्रस्तावना करती है कि सामर्थ्य की खोज समीकरणों में आग फूंकने के द्वारा ब्रह्माण्ड को आरंभ व संचालित करती है।
और सामर्थ्य की यह अंतहीन एवं शाश्वत खोज कहां से आती है?
सुमा का मानना है कि यह सामर्थ्य/संभावना शाश्वत है। तो बदले में, सामर्थ्य/संभावना ने यथार्थ रूप लेने का प्रयास किया... और परिणाम सब जानते हैं। निःसंदेह, यह कहीं अधिक विशिष्ट है और सुमा ने 16 बिंदुओं वाली रूपरेखा प्रस्तावित की है।
हॉकिंग : "मुझे विश्वास नहीं है कि परम सिद्धांत मौजूदा पद्धतियों से नियमित कार्य करके मिलेगा। हमें कुछ नया चाहिए। हम यह पूर्वकथन नहीं कर सकते कि वह क्या होगा या हम उसे कब ढूंढ पाएंगे, क्योंकि यदि हमें यह बात पता होती, तो हम उसे पहले ही ढूंढ चुके होते!"
बर्नबाउम के अनुसार : आपने एक बार फिर सही कहा प्रोफ़ेसर हॉकिंग। बिल्कुल ठीक।
स्टीफन - आपकी स्पष्टता के लिए धन्यवाद।
हॉकिंग ने इसका सटीक पूर्वानुमान लगाया था। संभावित ‘परम सिद्धांत’ बर्नबाउम का सामर्थ्यवाद सिद्धांत है। यह जितना सुंदर है उतना ही सम्मोहक और मौलिक भी; इसने 21वीं सदी में ब्रह्माण्ड की हमारी समझ के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। 21वीं सदी ने तीक्ष्ण अंतर्दृष्टि के युग में कदम रख दिया है। इसका पूर्वकथन कोई कर ही नहीं सकता था।
सुमा मेटाफिज़िका का सामर्थ्यवाद का सिद्धांत "पटखनी" देने का प्रयास करता है। बर्नबाउम यह कहने वाले पहले व्यक्ति हैं कि (1) यह एक परिकल्पना है और (2) यह कि यह हमें कई ‘पर्त’ आगे बढ़ाती है। हालांकि, प्रतीत होता है कि यह सिद्धांत हमारी समझ को एक-एक कदम आगे बढ़ाने की बजाए, उसे बहुत बड़ी छलांग के जरिए आगे बढ़ाता है। ध्यान दें कि बर्नबाउम 10 वर्ष की आयु (वर्ष 1960) से ऐसा कह रहे हैं। उन्होंने 32 वर्ष की आयु (वर्ष 1982) में सुमा 1 लिखना आरंभ किया था।
सामर्थ्यवाद का सिद्धांत : प्रसंग
एक दर्जन से भी अधिक महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल सुमा मेटाफिज़िका डेढ़ सौ से भी अधिक लेखों और समीक्षाओं का केंद्र रह चुका है। वर्ष 1988 में सुमा मेटाफिज़िका 1 (कोताव पब्लिशिंग) के जरिए प्रस्तुत इस सिद्धांत में अभी तक कोई दोष ज्ञात नहीं हुआ है।
सामर्थ्यवाद का सिद्धांत : सम्मेलन
सुमा मेटाफिज़िका -- और उसका सामर्थ्यवाद का सिद्धांत -- बार्ड कॉलेज (अपस्टेट, न्यू यॉर्क) में अप्रैल 2012 में आयोजित एक 3+ दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक सम्मेलन का केंद्रीय विषय था। सुमा मेटाफिज़िका को वैश्विक स्तर पर लांच करने वाले इस सम्मेलन ने शिक्षा और मीडिया की दुनिया में तहलका मचा दिया था। Conference1000.com देखें।
सामर्थ्यवाद का सिद्धांत : एमआईटी और एनवाययू के अग्रणी शिक्षाविदों की मेल खाने वाली रचनाएं
बर्नबाउम के सामर्थ्यवाद के सिद्धांत से मेल खाने वाली हालिया उच्चस्तरीय शैक्षिक रचनाओं में निम्नांकित शामिल हैं :
प्रोग्रामिंग द यूनिवर्स (नॉफ़, 2006), रचयिता सेथ लॉयड, क्वांटम भौतिकी प्रोफ़ेसर, एमआईटी; माइंड एंड कॉस्मोस (ऑक्सफ़ोर्ड प्रेस, 2012), रचयिता थॉमस नागेल, दर्शनशास्त्र एवं विधि प्रोफ़ेसर, एनवाययू; आर मेथेमेटिकल यूनिवर्स (नॉफ़, 2014), रचयिता मैक्स टेगमार्क, भौतिकी प्रोफ़ेसर, एमआईटी।
सामर्थ्यवाद का सिद्धांत : प्रतिमान की चुनौती
अपने क्रांतिकारी रूप से सत्य, हर वस्तु के सिद्धांत (देखें TTOE1000.com) के माध्यम से बर्नबाउम ने एक वैश्विक प्रतिमान चुनौती पेश कर दी है। देखें PotentialismTheory.com/ParadigmChallenge/
डेविड बर्नबाउम स्वयं विश्व स्तर पर विख्यात हैं और इतिहास व अध्यात्म की कई महत्वपूर्ण शृंखलाओं के रचयिता या मुख्य संपादक हैं। उनके नए प्रतिमान मेट्रिक्स मंच (देखें NPM1000.com) पर 180 से भी अधिक विश्वस्तरीय विचार नायक उपस्थित हैं।